मंगलवार, 25 अगस्त 2020

मूर्ख ब्राह्मण की कहानी - ज्ञान वर्धक और मजेदार किस्से

मूर्ख ब्राह्मण की कहानी 

किसी गांव में एक मुर्ख ब्राह्मण रहा करते थे. यह एक बहुत करामाती मंत्र जानते थे।मंत्र का गुण यह था कि एक विशेष प्रकार का नक्षत्र योग आने पर जब उसका प्रयोग किया जाता तो आकाश से नाना प्रकार के रत्न और धन की वर्षा होने लगती थी। उस मुर्ख ब्राह्मण के पास एक बड़े बुद्धिमान विद्यार्थी पढ़ते थे.

मूर्ख ब्राह्मण पंचतंत्र की कहानी 

मूर्ख ब्राह्मण की कहानी, मूर्ख ब्राह्मण पंचतंत्र की कहानी

एक दिन एक काम से मुर्ख ब्राह्मण उस विद्यार्थी को लेकर घर से बाहर हुए. कुछ दूर जाने पर वे एक घने जंगल में आ गया. इस जंगल में 500 डाकू रहते थे। राहगीरों के आते ही उनका माल असबाब लूट लेते थे। उस ब्राह्मण और विद्यार्थी की भी यही दशा हुई। डाकुओं ने उन्हें बांध लिया। राहगीरों के पास सदा रुपया पैसा नहीं रहा करता था फिर भी डाकू उनको नहीं छोड़ते थे। वह एक को बांधकर दूसरे से कहते कि जाओ यदि हो सके तो रुपए लेकर इसे छुरा ले जाओ।

यदि बाप बेटे को भी पकड़ पाते तो लड़के को बांधकर रख लेते और बाप को रुपया ले आने को भेजते। यदि मां बेटी को पकड़ते तो बेटी को पककर मां को रुपया ले आने को कहते थे। इसी तरह यदि दो भाइयों को पकड़ते तो छोटे को पकर कर बड़े को पैसे लाने के लिए भेज देते थे। गुरु चेला को पकड़ने पर गुरु को रखकर चेले को भेजते थे।

उसी तरह, उस मुर्ख ब्राह्मण को पकड़ रखा और शिष्य को रुपया पैसा ले आने के लिए भेज दिया।
 जाते समय शिष्य ने गुरु को नमस्कार करके कहा," मैं तो 1-2 दिन के भीतर
ही लौटूंगा आप डरिए मत।

किंतु एक काम आपको करना होगा। आपको मैं सावधान किया जा रहा हूं, आज धन वर्षा का योग है, आप ऐसा मत कीजिएगा कि आप दुख से कतार होकर धनवर्षा कर दें।

यादें करेंगे तो आप खुद भी बनेंगे और यह 500 डाकू भी साथ में मरेंगे।

शिष्य ने ऐसा कह कर रुपया के लिए घर की ओर चलें। संध्या समय पूर्व की ओर चांद उगने लगा।

मुर्ख ब्राह्मण ने देखा, नक्षत्र योग आ रहा है।

नक्षत्र योग दिखाई दे रहा था।

मुर्ख ब्राह्मण ने सोचा:- मैं इतना कष्ट क्यों करूं, मैं इसी समय मंत्र केबल से धन वर्षा कर इन्हें देख कर क्यों न चला जाऊं।

फिर मुर्ख ब्राह्मण ने बोला डाकुओं को:- क्यों जी तुम लोगों ने मुझे क्यों पकड़ा है।

डाकुओं ने बोला:- मैंने तुम्हें धन के लिए पकड़ा है।

फिर मुर्ख ब्राह्मण ने बोला:- यही बात है तो मेरा बंधन खोल दो, स्नान करने दो, नया वस्त्र पहनने दो, चंदन लगाने दो और फूलों की माला पहन ने दो।

फिर ब्राह्मण के अनुसार डाकुओं ने भी वैसा ही किया। ब्राह्मण ने मंत्र पाठ कर जैसे ही आकाश की ओर देखा वैसे ही आकाश से नाना धन रत्नों की बारिश होने लग गई। डाकुओं ने उस धन को लूट कर अपने कपड़ों में बांध कर चलते बने।

मुर्ख ब्राह्मण भी उनके पीछे-पीछे जाने लगे। कुछ दूर जाने के बाद अचानक 500 डाकू और आ गए। और उन्होंने इन डाकुओं को रोक लिया।

पहले डाकुओं ने कहा," क्यों हमें रोकते हो?

दूसरे डाकू ने बोला:- धन के लिए।
पहले डाकुओं ने कहा:- अगर यही बात है तो इस ब्राह्मण से मांगो। इसके आकाश की ओर देखते ही धन की वर्षा होती है इसी ने हमको धन दिया।

दूसरे वाले डाकू ने पहले वाले डाकू को छोड़कर ब्राह्मण को ही पकड़ लिया।

दूसरा डाकू ने बोला:- बाबा जी हम लोगों को भी ध्यान दो।
मुर्ख ब्राह्मण ने कहा:-अगर यही बात है तो साल भर ठहरो उस योग के आने पर मैं धन वर्षा कर तुम्हें भी दूंगा।

डाकू को गुस्सा उठ गया, और बोला:- क्यों रे दुष्ट ब्राह्मण इनके लिए अभी वर्षा हुई और हम लोगों के लिए होगी साल भर बाद।

उन्होंने यही कह कर ब्राह्मण को काटकर रास्ते पर फेंक दिया और साथ ही दौड़कर दूसरे डाकुओं को भी पकड़ लाया। फिर क्या हुआ हुआ दोनों दलों में भयंकर मारामारी शुरू हुई।बहुत मरे बहुत बचे जो बचे, उन में फिर गोलमाल शुरू हुआ इस प्रकार अंत में सिर्फ दो आदमी बच गए और शेष सभी मारकाट में समाप्त हो गए।

बचे हुए आदमी सारा धन रत्न लेकर जाते जाते एक गांव के पास आए। वहां उन दोनों ने एक वृक्ष के नीचे रुपयों को छुपा दीया। उनमें से एक तलवार लेकर वृक्ष पर चढ़ा और पहरा देने लगा, दूसरा खाने को भात लेने के लिए गांव में गया।

तलवार लेकर पहरा देने वाले ने सोचा कि अगर वह लौटकर आएगा तो इस धन को दो हिस्सों में बांटना पड़ेगा। उसने यह सोचकर उस तलवार को संभाल कर पकड़ लिया और उसके आने की राह देखने लगा।

जो गांव में भाग लेने गया, वह भी सोचने लगा कि' यदि वाह जिंदा रहेगा तो आधा हिस्सा ले लेगा।क्यों ना इस बात में विश मिलाकर यदि उससे खिलाया जाए तो वह खाते ही मर जाएगा और सारा रुपया मेरा होगा।

यही सोच कर खुद तो उसने आधा भात खा लिया और बाकी मैं विश मिला कर ले आया। पहला आदमी मारने के लिए तैयार था। दूसरे के आते ही तलवार से उसको दो टुकड़े कर एक गुप्त स्थान में फेंक आया। हेड विद मिलाया हुआ भात खुद खा कर मर गया।

इधर गुरु को छुड़ाने के लिए सिर्फ रुपया पैसा लेकर 2-1 दिन के भीतर ही आप पहुंचे। आकर देखा, गुरु वहां नहीं है और धन रतन चारों और भी खराब पड़ा है। वह समझ गए कि गुरु ने उनकी बात नहीं सुनी वे धन वर्षा करके सब के साथ स्वयं नष्ट हो गए।

आज आपने क्या सीखा-
कितनी भी विकट स्थिति हो. मनुष्य को घबड़ाना नहीं चाहिए।

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